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Overviewहर संगठन उतार-चढ़ाव देखता है, लेकिन कई बार उसके सफर में कुछ ऐसी घटनाएँ होती हैं, जो उसके अस्तित्व के लिए चुनौती खड़ी कर देती हैं या फिर उस संगठन को बदलकर रख देती हैं। शिवसेना ने साठ के दशक में अपने जन्म के बाद चार बड़ी बगावतें देखीं। पहली तीन बगावतें तब हुईं जब बालासाहब जीवित थे और शिवसेना सत्ता में नहीं थी। उन बगावतों ने शिवसेना को हिलाया जरूर लेकिन उनका लंबे वक्त तक पार्टी पर प्रभाव नहीं रहा और पार्टी की बागडोर ठाकरे परिवार के हाथ रही...लेकिन जून 2022 में हुई बगावत उन सबसे अलग थी, सबसे बड़ी थी। इस बगावत ने न केवल उद्धव ठाकरे के हाथ से महाराष्ट्र की सत्ता छीन ली, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया कि क्या शिवसेना की बागडोर भी ठाकरे परिवार से छिन जाएगी। जिन्होंने कई दशकों से शिवसेना को देखा है, उनके लिए बिना ठाकरे के शिवसेना की कल्पना कर पाना आसान नहीं होगा। शिवसेना और ठाकरे एक-दूसरे के पर्यायवाची शब्द बन गए थे।...लेकिन जैसी कि कहावत है, 'सब दिन होत न एक समाना' शिवसेना भी बड़ा बदलाव देख रही है। सबकी जिज्ञासा है यह राजनीतिक भूचाल कब, क्यों और कैसे आया; इस बगावत के पीछे क्या कारण थे; क्या शिवसेना सुप्रीमो बालासाहब ठाकरे की विरासत को उद्धव ठाकरे सँभाल नहीं पाए...? पुराने और हिंदुत्व को केंद्र में रखकर रणनीति करनेवाली इस पार्टी के सबसे बड़े विद्रोह और बगावत पर एक संपूर्ण पुस्तक। Full Product DetailsAuthor: Jitendra DixitPublisher: Prabhat Prakashan Imprint: Prabhat Prakashan Dimensions: Width: 14.00cm , Height: 0.90cm , Length: 21.60cm Weight: 0.209kg ISBN: 9789355211880ISBN 10: 9355211880 Pages: 160 Publication Date: 01 December 2022 Audience: General/trade , General Format: Paperback Publisher's Status: Active Availability: In Print ![]() This item will be ordered in for you from one of our suppliers. Upon receipt, we will promptly dispatch it out to you. For in store availability, please contact us. Language: Hindi Table of ContentsReviewsAuthor InformationTab Content 6Author Website:Countries AvailableAll regions |