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Overview'जिस जाति की सभ्यता जितनी पुरानी होती है, उसकी मानसिक दासता के बन्धन भी उतने ही अधिक होते हैं। भारत की सभ्यता पुरानी है, इसमें तो शक ही नहीं और इसलिए इसके आगे बढ़ने के रास्ते में रुकावटें भी अधिक हैं। मानसिक दासता प्रगति में सबसे अधिक बाधक होती है।' राहुल सांकृत्यायन की पुस्तक ' दिमाग़ी गुलामी' का यह शुरुआती अंश है। यह जैसे-जैसे आगे बढ़ता है, वह मनुष्य के भ्रम की शल्यचिकित्सा करते चले जाते हैं। हम भूत पर उंगली तो रखते हैं, लेकिन भविष्य पर दृष्टि नहीं। वह समझाते हैं कि किस तरह मनुष्य अनेक तरह के संकीर्ण विचारों की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। यह बेड़ियाँ राष्ट्रवाद, प्रांतवाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद, नृजातीय संघर्ष आदि हैं। यह संकीर्ण विचार ही मनुष्य से मनुष्य में आपसी झगड़े का कारण बन रहे हैं और देश के विकास में बाधक हैं। इसलिए इन अनर्गल विचारों से मुक्ति ही मानसिक दासता की बेड़ियों को तोड़ने के समान है। Full Product DetailsAuthor: Rahul SankrityayanPublisher: Sanage Publishing House Llp Imprint: Sanage Publishing House Llp Dimensions: Width: 14.00cm , Height: 0.50cm , Length: 21.60cm Weight: 0.118kg ISBN: 9789362051615ISBN 10: 9362051613 Pages: 86 Publication Date: 02 July 2024 Audience: General/trade , General Format: Paperback Publisher's Status: Active Availability: Available To Order ![]() We have confirmation that this item is in stock with the supplier. It will be ordered in for you and dispatched immediately. Table of ContentsReviewsAuthor Information"""महापंडित राहुल सांकृत्यायन (9 अप्रैल 1893 - 14 अप्रैल 1963) एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद् थे। यूं तो मूल नाम केदारनाथ पांडे था, किन्तु बौद्ध धर्म इतना गहरे से उतरा कि फिर वह चोला कभी नहीं उतरा। लिहाजा राहुल (गौतम बुद्ध के पुत्र का नाम) हो गए। सांस्कृत्यायन अपने कुल गौत्र से धारण किया। इस तरह वह राहुल सांकृत्यायन हो गए। इस नामकरण के साथ उन्होंने न्याय भी किया। मार्क्सवाद ने भी उन्हें खासा प्रभावित किया। अत बौद्ध दर्शन और मार्क्सवाद दोनों का मिलाजुला चिंतन उनके दृष्टिकोण में दिखाई देता है। इस की झलक बन्धुल मॉल (490 ईसा पूर्व, 9वीं कहानी) और प्रभा में देखी जा सकती है।सांकृत्यायन का पहला उपन्यास 'जीने के लिए'(1938) था। इसी कालखंड के दौरान 1941-42 में उन्हें भगवत शरण उपाध्याय की ऐतिहासिक कहानियों ने प्रेरित किया। वह हिन्दी के पहले लेखक थे, जो भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में भाग लेने के चलते जेल गए।बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में उन्होंने साहित्य सृजन किया, जिसमें सर्वाधिक उनकी ख्याति यात्रा वृतांत/यात्रा साहित्य तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में है। उन्हें हिन्दी यात्रा साहित्य के पितामह का गौरव प्राप्त है। बौद्ध धर्म पर उनका शोध हिन्दी साहित्य में युगान्तरकारी माना जाता है। इसके लिए उन्होंने तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक भ्रमण कर शोध किया। मध्य-एशिया व कॉकेशस भ्रमण पर उनका शोधपरक यात्रा वृतांत आज क्लासिक सूची में शामिल है। जीवन के प्रति उनका गतिशील दृष्टिकोण ही उन्हें बहुदा समक्ष लेखकों से अलग करता है।""" Tab Content 6Author Website:Countries AvailableAll regions |